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Save families, save society, save nation.

Monday, November 24, 2008

कब शांत होगी दहेज़ की भूख?

आज एक ब्लाग पर यह सवाल उठा है - कब रूकेगी लड़के वालों की दहेज़ की भूख? कब मिलेगा लड़कियों को उचित सम्मान?

प्रश्न जटिल हैं पर उत्तर बहुत आसान. प्रश्न सारे समाज को डस रहे हैं पर उत्तर हम में से हर एक के पास है - 'मुझे डकार आ गई, अब दहेज़ की भूख नहीं है. मैं लड़कियों को उचित सम्मान दूँगा'. इस को रोज सुबह की अपनी प्रार्थना  में शामिल कर लेना है बस. रात को सोते समय समीक्षा करनी है और ईश्वर का धन्यवाद करना है कि उस ने हमें नारी का अपमान करने से बचा लिया.  

Friday, November 21, 2008

गृहस्थाश्रम संसार का मूल है

गृहस्थाश्रम में स्त्री मुख्य है. उनके कारण ही मनुष्य गृहस्थ कहलाता है. साधुओं के मठ, आश्रम, धाम आदि को कोई घर नहीं कहता. मनुष्य वृक्ष के नीचे रहे, और अगर स्त्री वहां है तो वह घर हो जाता है. लेकिन आज पश्चिमी सभ्यता के अन्धानुकरण ने स्त्रियों को भोग-सामग्री बना दिया है. स्त्री को मात्र देहरूप में देखना उसका निरादर है. स्त्री को मां रूप में देखना चाहिए. मां का दर्जा बहुत ऊंचा है. 

गृहस्थाश्रम में पुरुषों और स्त्रियों को चाहिए कि सुई बनें, कतरनी (केंची) मत बने. सुई दो को एक कर देती है, कतरनी एक को दो कर देती है. ऐसा कोई काम न करें, जिससे कलह पैदा हो. घर में प्रेम रखें. बालकों को भोजन कराने में विषमता मत करें. बेटा और बेटी दोनों से सम व्यवहार करें. सास को चाहिए कि अगर कभी बेटी और बहू में अनबन हो जाए तो बहू का पक्ष लें. 

गृहस्थाश्रम में बहुत सावधानी से रहना चाहिए. छोटी से गलती से भी बहुत बड़ा नुक्सान हो सकता है. दूसरा कोई गलती भी कर दे तो उसे सह लेना चाहिए. घर के बाहर, दफ्तर या बिजनेस में हम दूसरों की गलतियाँ सहते हैं तो घर के अन्दर किसी की गलती को सहने से परहेज क्यों होना चाहिए? 

गृहस्थाश्रम एक पाठशाला है, जिस में प्रेम का पाठ पढ़ना चाहिए.