आज टीवी पर जितने ऐसे सीरिअल दिखाए जा रहे हैं जिनमें परिवार का चित्रण है, उनमें कम से कम एक बुरी औरत जरूर होती है. यह बुरी औरत कोई भी हो सकती है - मां, सास, बेटी, बहु, बहन, भाभी, चाची, मामी, बुआ, दादी, मतलब परिवार की कोई भी महिला सदस्य. यह बुरी औरत हमेशा जीतती हुई दिखाई जाती है. यह कभी हारती नहीं. सारे परिवार से अकेली लोहा लेती है. ईंट से ईंट बजा देती है परिवार की. एक सीरिअल में यह बुरी औरत एक बहन है. वह अपने भाई और भाभी की मार देती है. यह दोनों पुनर्जन्म लेते हैं, पर इस जन्म में भी यह बुरी औरत ही उन पर भारी पड़ती है.
यह सीरियल वाले क्या दिखाना चाह रहे हैं? अगर यह सच है कि हर हिंदू परिवार में एक बुरी औरत जरूर होती है, तब तो यह बहुत चिंता का विषय है. और अगर यह सच नहीं है तो इन का उद्देश्य क्या हो सकता है? अगर यह प्रगतिशीलता की निशानी है तो क्या यह जरूरी है कि प्रगतिशील होकर बुरा बनना जरूरी है, या बुरा बन कर ही प्रगतिशील कहलाया जा सकता है?