कल रात बालिका वधु का एपिसोड देख कर बहुत दुःख हुआ. बैसे तो यह सीरिअल प्रारंभ से ही नकारात्मक द्रष्टिकोण पर आधारित है, पर कल तो हद हो गई. बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति है. इसी तरह बाल विधवा से दुर्व्यवहार और उसके पुनर्विवाह का विरोध भी सामजिक कुरीति है. इन दोनों कुरीतिओं पर आधारित यह सीरिअल एक सही सन्देश देता है, पर इन कुरीतिओं को दूर करने का कोई ठोस समाधान नहीं सुझाता. जब भी इस कहानी में इन कुरीतिओं के विरोध में स्वर मुखर हुए उन्हें किसी न किसी तरीके से दबा दिया गया और एपीसोड के अंत में एक पंक्ति लिख कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली गई.
आनंदी के विवाह का विरोध किया उसकी अध्यापिका ने, पर उसके माता-पिता और सारा गाँव दीवार बन कर खड़े हो गए. अध्यापिका कुछ नहीं कर पाई और एक होनहार छात्रा बचपन में ही व्याह दी गई. फिर उसका गौना भी कर दिया गया. जो गलत है वही इस सीरिअल में हुआ दिखाया गया. यही गहना के साथ हुआ. बेचारी की किसी ने नहीं सुनी. यह सब गलत है पर सीरिअल में यही सब हुआ. कोई नई बात, कोई नया समाधान नहीं सुझाया गया.
सुगना का विवाह और फिर गौना उसी कड़ी का हिस्सा हैं. सुगना के माता-पिता समझदार हैं पर कोई उदहारण प्रस्तुत नहीं करते. चुपचाप अपनी माता का कहना मान लेते हैं. कल के एपिसोड के अंत में यही कहा गया कि जो कुछ हुआ वह बाल विवाह का दुष्परिणाम है. डाकुओं ने बारात लूट ली, वर की हत्या कर दी. क्या यह उन्होंने इसलिए किया कि वर वधु दोनों बच्चे थे? क्या डाकू उम्र देख कर लूट मार करते हैं?
क्या सीरिअल के निर्माता ने यह सब कल्याणी को सबक सिखाने के लिए किया? ऐसा सबक सिखा दिया उसे. उसकी अपनी पोती को विधवा बना दिया. सुगना और प्रताप दोनों बच्चे इतने प्यारे, और उनके साथ ऐसा निर्मम अत्त्याचार किया निर्माता ने. क्या गलती थी उनकी? कल्याणी की गलती की सजा उन्हें क्यों? क्या कोई और तरीका नहीं था कल्याणी को उसकी गलती का एहसास कराने का. किसका विरोध करता है यह सीरिअल, इस सामाजिक कुरीति का या कल्याणी का? क्या एक बच्चे को मार कर और दूसरे को विधवा बना कर यह कुरीति दूर हो जायेगी? बापू ने कहा है - पाप से घ्रणा करो पापी से नहीं. पर यहाँ पापी से घ्रणा की गई. अच्छे खासे सुखी परिवारों में हमेशा के लिए दुःख ही दुःख की वारिश कर दी गई. बहुत निराश किया इस सीरिअल ने.
टीवी पर एक सीरिअल और आ रहा है - साईं बाबा. उसमें भी विधवा विवाह की बात आती है. शिर्डी के एक परिवार की बेटी विधवा हो जाती है. उसकी ससुराल वाले उसका पुनर्विवाह करना चाहते हैं. पर उसके अपने माता-पिता इसका विरोध करते हैं. गाँव वाले उन्हें साईं बाबा के पास लाते हैं. बाबा उन्हें समझाते हैं और वह मान जाते हैं. उनकी विधवा बेटी का पुनर्विवाह हो जाता है. क्या यह तरीका गलत है? क्या ऐसा ही कोई तरीका बालिका वधु में नहीं अपनाया जा सकता था?
वणी गाँव में देवी मंदिर के पुजारी की बेटी विधवा हो जाती है. गाँव के साथ-साथ उसके पिता भी उसके पुनर्विवाह के विरोधी हैं. साईं बाबा रूप बदल कर पुजारी के पास जाते हैं और उन्हें समझाते हैं. पुजारी की समझ में बात आ जाती है और वह सारे समाज का विरोध सह कर भी अपनी बेटी का पुनर्विवाह करने की प्रतीज्ञा करते हैं. पर तब तक उनकी बेटी अपने प्रति दुर्व्यवहार से दुखी होकर घर छोड़ कर जा चुकी होती है. पर ऐसा लग रहा है कि वह वापस आएगी और उस का पुनर्विवाह होगा. क्यों नहीं ऐसा कुछ बालिका वधु में हो सकता था?
सामाजिक कुरीतिओं से लड़ने के लिए हमें अपना सोच सकारात्मक बनाना होगा. टीवी और फिल्म बहुत शशक्त माध्यम हैं अपनी बात कहने की. सामाजिक कुरीतिओं के विरोध में सही बात सही तरीके से कही जानी चाहिए.