कन्या भ्रूण हत्या एक अमानवीय कार्य है, पर बहुत से मानव यह अमानवीय कार्य कर रहे हैं. जो मानव यह हत्या कर रहे हैं उनमें ज्यादा संख्या उन की है जो पढ़े-लिखे हैं, धनवान हैं और जिन के पास कोई उचित या अनुचित कारण भी नहीं है ऐसा करने का. फ़िर भी ऐसा हो रहा है. पंजाब में इस के परिणाम स्वरुप नारी-पुरूष अनुपात ८००:१००० हो गया है.
क्या किया जाना चाहिए यह हत्याएं रोकने के लिए?
सबसे पहली जरूरत है कानून में बदलाब की. आज ऐसे बहुत से कानून हैं जिन में नारी का हित पुरूष के हित से कम मापा गया है. यह कानून किसी न किसी रूप में नारी को पुरूष से कम अधिकार देते हैं, उस के साथ पक्षपात करते हैं. इन कानूनों को बदला जाना चाहिए. नारी हित को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना और उस का संरक्षण करना भारतीय कानून और समाज का प्रमुख दायित्व है. भारतीय कानून और समाज को अपना यह दायित्व निभाना चाहिए.
दूसरा तरीका है शिक्षा द्वारा इन मानवों को उनके द्वारा की जा रही भ्रूण हत्याओं के अमानवीय पक्ष के बारे में अवगत कराना. उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि कन्या भ्रूण हत्या एक कानूनी और सामजिक अपराध है. पर यहाँ समस्या यह है कि पढ़े-लिखे लोगों को कैसे समझाया जाय? यह लोग सब जानते हैं पर फ़िर भी कन्या भ्रूण हत्या करने से बाज नहीं आते.
तीसरा रास्ता जो मुझे असरदार लगता है वह है धार्मिक आस्था का रास्ता. यह खुशी की बात है कि पंजाब में एक अभियान चलाया जा रहा है जिस का नाम है 'नन्ही छां'. इस अभियान का उद्घाटन रेनबेक्सी के चेयरमेन श्री हरपाल सिंह ने किया. इस अभियान में, अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर में आने वाले दर्शनार्थियों को एक नन्हा पौधा प्रसाद के रूप में दिया जायेगा. यह पौधा फरबरी-मार्च और अगस्त-सितम्बर में हर दर्शनार्थी को दिया जायेगा. अनुमानतः लगभग १५०००० से २००००० दर्शनार्थी हर दिन स्वर्ण मन्दिर में आते हैं. इस के पीछे यह भावना है कि जैसे एक नन्हा पौधा बड़ा होकर एक वृक्ष बनता है जो मानवों को जीवित रहने के लिए आक्सीजन देता है, उसी प्रकार एक कन्या बड़ी होकर एक नारी बनती है और मां बनकर मानव जीवन प्रदान करती है. यहाँ धार्मिक भावनाओं का प्रयोग करके लोगों को यह बताना है कि कन्या भ्रूण हत्या ईश्वर के प्रति भी एक घोर अपराध है और इस से बचना चाहिए.
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4 comments:
नमस्कार
आज इस ब्लोग पर पहली बार आया हूं केवल नाम से आकर्षित होकर. परिवार ओ बचाने की आज महती आवश्यकता है. आप ने बहुत अच्छा व सामयिक विषय चुना है. परिवर्तन के ओजार कानून, शिक्षा व धर्म बहुत उपयोगी व प्रभावशाली ओजार माने जाते रहे है किन्तु कानून तभी प्रभाव छोडते हैं, जब समाज स्वीकार करे, शिक्षा आजकल आचरण का विषय न रह कर केवल परीक्षाओं तक सीमित रह गयी है, जो पढा जाता है, आचरण उसके विपरीत ही देखा जाता है, धर्म शोषण का हथियार हो गया है. नारी को सबसे अधिक नुकशान धर्म ने ही पहुंचाया है. अतः सामाजिक स्तर पर जागरूक होना होगा, क्या हम आप उपेक्षित व अनाथ कन्याओं को बेटी के रूप में स्वीकार करके, अपने आप से शुरूआत करने का काम नही कर सकते? चर्चाओं की अपेक्षा कर्म में ढाले तभी परिवर्तन लाये जा सकते हैं. अपने से शुरूआत करके सामाजिक परिवर्तन लाये जा सकते हैं. अधिक कानून अपने आप में समस्या पैदा करते हैं.
iska karan hai kisi bhi pralobhan me padkar ye batana ki female hai ya male arthat yadi isme doctoron ki bhumika ko aham mudda banaya jaye to aisa sambhav hai.na ultrasound hoga na pata chalega
आप महिला के बारे मे इतना लिखते है लेकीन आप कभी यह सोचते है कि महिला के संरक्षण के लिये और. और अधिकार के लिये जो कानून बन राहे उसका ये महिला गैर फायदा लेकर पुरुशोन्के उपर अत्त्यार कर रहे उसके उपर आप सब लोग क्यो आंख बंद कर बैठ गये है..भारत औरंगाबाद ....
आप महिला के बारे मे इतना लिखते है लेकीन आप कभी यह सोचते है कि महिला के संरक्षण के लिये और. और अधिकार के लिये जो कानून बन राहे उसका ये महिला गैर फायदा लेकर पुरुशोन्के उपर अत्त्यार कर रहे उसके उपर आप सब लोग क्यो आंख बंद कर बैठ गये है..भारत औरंगाबाद ....
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