भारतीय समाज का केन्द्र बिन्दु परिवार है. जब कोई पुरूष या नारी स्वयं को समाज का केन्द्र बिन्दु मानकर परिवार की अवहेलना करता है तब परिवार टूटता है और उस के साथ टूटता है समाज. पुरूष और नारी परिवार/समाज की गाढ़ी के दो पहिये हैं. जब तक यह दोनों पहिये एक साथ नहीं चलेंगे गाढ़ी ठीक से नहीं चलेगी.
भारतीय समाज पुरूष प्रधान समाज है. आज जब की नारी हर छेत्र में न केवल पुरूष की बराबरी कर रही है बल्कि कहीं उस से आगे भी निकल रही है, यह जरूरी हो गया है कि नारी को वह सब अधिकार और सुविधाएं मिलें जिनकी वह अधिकारिणी है. पर यह सब परिवार की परिधि में रह कर ही किया जाना चाहिए.
नारी और पुरूष दोनों बराबर हैं. वह एक दूसरे के पूरक हैं. दोनों को समान अधिकारों के साथ अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्य पूरे करने हैं. यह तभी सम्भव हो पायगा जब दोनों के बीच में कोई भी अन्तर नहीं रहेगा.
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Tuesday, July 29, 2008
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