अब आदमी पढ़ता किसलिए है अगर नौकरी न करे? नौकरी करने का मजा ही कुछ और है. सुबह आराम से उठिए. आराम से तैयार होइए. बगल में अखबार दबाकर चल दीजिये बस की और. वहां आप जैसे और भी बहुत नौकरी करने वाले मिलेंगे. सबसे प्यार भरी नमस्कार के बाद, दिन शुरू कर दीजिये.
"देखा, दिखा दिया न भज्जी ने कमाल, अरे एक थप्पड़ ही तो मारा था श्रीशांत के. साला ऐसे रोया जैसे जीएफ किसी और के साथ भाग गई हो. बिना मतलब तीन करोड़ की चपत लग गई भज्जी को. अब वापस लौटा तो बही रंग. चटका दिए न श्रीलंका के विकेट पर विकेट. चेहरे पर कोई मलाल नहीं तीन करोड़ का. अरे इतने में तो एक एमपी खरीद लिया था मनमोहन ने. मतलब एक एमपी बराबर एक थप्पड़.
"गुरु यह उमा भारती की क्या कहानी है? विश्वास मत के बाद विश्वास मत के पहले की सीडी बना दी, लगता है अमर सिंह ने उसे भी कोई अच्छी रकम दिलवा दी."
"यार अब मोबाइल पर बकबास कालों से निजात मिलेगी. एससी का कहना है 'काल मत करो' की जगह 'काल करो' शुरू करो. जिसे यह बकबास कालें पसंद हों वही अपना नंबर दर्ज कराये."
"यार कल रात सपने में तेरी स्टेनो को देखा. साली मेरी स्टेनो तो बस, भगवान् बचाए."
"मान गए सीआईसी को. महिला यौन शोषण पर कोई कमेटी ही नहीं बनाई. हमारे दफ्तर में तो तुंरत ही बना दी कमेटी. महिलाओं से तो मजाक करने को भी तरस गए."
ऐसी ही बहुत सारी बातें, बस में और फ़िर दफ्तर में. चाय और फ़िर चाय. लंच में मूंगफली. पता नहीं दिन कब निकल जाता है. अगर नौकरी न करते तो जिंदगी कैसे बीतती? मुझे तो डर लगता है, रिटायर होने के बाद क्या करेंगे?
नौकरी करने के बहुत सारे फायदे हैं. सच पूछिए तो ईश्वर ने यह जीवन नौकरी करने के लिए दिया है. कुछ फायदों का जिक्र किया है मैंने. कुछ का आप करो.
महिलायें और नौकरी पर कुछ नहीं लिख रहा हूँ. डर है कि कहीं चोखेरवालियां नाराज न हो जाएँ.
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Saturday, August 2, 2008
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