आज टीवी पर जितने ऐसे सीरिअल दिखाए जा रहे हैं जिनमें परिवार का चित्रण है, उनमें कम से कम एक बुरी औरत जरूर होती है. यह बुरी औरत कोई भी हो सकती है - मां, सास, बेटी, बहु, बहन, भाभी, चाची, मामी, बुआ, दादी, मतलब परिवार की कोई भी महिला सदस्य. यह बुरी औरत हमेशा जीतती हुई दिखाई जाती है. यह कभी हारती नहीं. सारे परिवार से अकेली लोहा लेती है. ईंट से ईंट बजा देती है परिवार की. एक सीरिअल में यह बुरी औरत एक बहन है. वह अपने भाई और भाभी की मार देती है. यह दोनों पुनर्जन्म लेते हैं, पर इस जन्म में भी यह बुरी औरत ही उन पर भारी पड़ती है.
यह सीरियल वाले क्या दिखाना चाह रहे हैं? अगर यह सच है कि हर हिंदू परिवार में एक बुरी औरत जरूर होती है, तब तो यह बहुत चिंता का विषय है. और अगर यह सच नहीं है तो इन का उद्देश्य क्या हो सकता है? अगर यह प्रगतिशीलता की निशानी है तो क्या यह जरूरी है कि प्रगतिशील होकर बुरा बनना जरूरी है, या बुरा बन कर ही प्रगतिशील कहलाया जा सकता है?
3 comments:
टेलिविज़न समाज को बदलने का जरिया है - फिर चाहे बदलाव अच्छाई की ओर हो या बुराई की ओर.
सुरॆश जी अब क्या कहा जाये.... मै तो इन ओच्छे नाटको ओर फ़िल्मो को देखता ही नही, लेकिन इतना जरुर है कि किसी मुसलिम दोस्त ने कहा था कि टेलिविजन एक शॆतान है, जो धीरे धीरे आप के परिवार को बर्वादी की ओर लेजा रहा है, ओर हम सब इस शेतात को शान से घर लाते है.
धन्यवाद
"यह सीरियल वाले क्या दिखाना चाह रहे हैं?"
..वो तो नही पता किंतु महिलाओं द्वारा धड़ल्ले से देखे जा रहे हैं!
और तो और हर हफ्ते ऐसे ही नए नए सीरियल आते जा रहे हैं!
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