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Tuesday, September 9, 2008

नहीं हमें कन्या नही चाहिए

मैंने अपने ब्लाग पर एक पोस्ट लिखी थी -
कन्या भ्रूण हत्या को कैसे रोकें?

फ़िर अखबार में एक लेख पढ़ा इस विषय पर।
बहुत ही शर्म की बात है। कन्या के साथ ऐसा अन्याय? ऐसा तो जानवर भी नहीं करते।

Thursday, September 4, 2008

सरकार दहेज़ कानून की समीक्षा करेगी

सरकार ने यह मान लिया है कि दहेज़ कानून का काफ़ी दुरूपयोग हो रहा है। इसलिए उस ने इस कानून कि समीक्षा करने का निर्णय लिया है। अखबार में इसबारे में छपी ख़बर पढ़िये :

Wednesday, September 3, 2008

कन्या भ्रूण हत्या कैसे रोकें?

कन्या भ्रूण हत्या एक अमानवीय कार्य है, पर बहुत से मानव यह अमानवीय कार्य कर रहे हैं. जो मानव यह हत्या कर रहे हैं उनमें ज्यादा संख्या उन की है जो पढ़े-लिखे हैं, धनवान हैं और जिन के पास कोई उचित या अनुचित कारण भी नहीं है ऐसा करने का. फ़िर भी ऐसा हो रहा है. पंजाब में इस के परिणाम स्वरुप नारी-पुरूष अनुपात ८००:१००० हो गया है.

क्या किया जाना चाहिए यह हत्याएं रोकने के लिए?

सबसे पहली जरूरत है कानून में बदलाब की. आज ऐसे बहुत से कानून हैं जिन में नारी का हित पुरूष के हित से कम मापा गया है. यह कानून किसी न किसी रूप में नारी को पुरूष से कम अधिकार देते हैं, उस के साथ पक्षपात करते हैं. इन कानूनों को बदला जाना चाहिए. नारी हित को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना और उस का संरक्षण करना भारतीय कानून और समाज का प्रमुख दायित्व है. भारतीय कानून और समाज को अपना यह दायित्व निभाना चाहिए.

दूसरा तरीका है शिक्षा द्वारा इन मानवों को उनके द्वारा की जा रही भ्रूण हत्याओं के अमानवीय पक्ष के बारे में अवगत कराना. उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि कन्या भ्रूण हत्या एक कानूनी और सामजिक अपराध है. पर यहाँ समस्या यह है कि पढ़े-लिखे लोगों को कैसे समझाया जाय? यह लोग सब जानते हैं पर फ़िर भी कन्या भ्रूण हत्या करने से बाज नहीं आते.

तीसरा रास्ता जो मुझे असरदार लगता है वह है धार्मिक आस्था का रास्ता. यह खुशी की बात है कि पंजाब में एक अभियान चलाया जा रहा है जिस का नाम है 'नन्ही छां'. इस अभियान का उद्घाटन रेनबेक्सी के चेयरमेन श्री हरपाल सिंह ने किया. इस अभियान में, अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर में आने वाले दर्शनार्थियों को एक नन्हा पौधा प्रसाद के रूप में दिया जायेगा. यह पौधा फरबरी-मार्च और अगस्त-सितम्बर में हर दर्शनार्थी को दिया जायेगा. अनुमानतः लगभग १५०००० से २००००० दर्शनार्थी हर दिन स्वर्ण मन्दिर में आते हैं. इस के पीछे यह भावना है कि जैसे एक नन्हा पौधा बड़ा होकर एक वृक्ष बनता है जो मानवों को जीवित रहने के लिए आक्सीजन देता है, उसी प्रकार एक कन्या बड़ी होकर एक नारी बनती है और मां बनकर मानव जीवन प्रदान करती है. यहाँ धार्मिक भावनाओं का प्रयोग करके लोगों को यह बताना है कि कन्या भ्रूण हत्या ईश्वर के प्रति भी एक घोर अपराध है और इस से बचना चाहिए.

Monday, September 1, 2008

क्या आपने यह ख़बर पढ़ी है?

अपनी पसंद के इंसान से शादी की इच्छा करने की यह सजा? या अल्लाह तुम्हारे नाम पर यह कैसा जुल्म हो रहा है?