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Thursday, July 17, 2008

क्या शिक्षा केवल घर के बाहर जाकर नौकरी करने के लिए है?

परिवार के हर सदस्य के लिए शिक्षा आवश्यक है, इस पर तो कोई अलग राय हो ही नहीं सकती. शिक्षा का उद्देश्य क्या हो, इस पर अलग राय हो सकती हैं. पर आज कल जो उद्देश्य मुख्य बन गया है वह है, शिक्षा धनोपार्जन के लिए होती है. यह पूर्णतया सही नहीं है. पर आज की शिक्षण पद्धति का प्रारूप ही ऐसा बन गया है कि उसे प्राप्त कर के मनुष्य केवल धनोपार्जन ही कर सकता है. एक अच्छा इंसान बनने में यह शिक्षा कोई मदद नहीं करती. सच्चाई तो यह है कि इस शिक्षा से मनुष्य इंसानियत से दूर हो रहा है.

शिक्षा संस्थानों को मन्दिर कहा जाता था. अब वह मात्र दुकानें बन गई हैं. पैसा दीजिये और डिग्री लीजिये. राजनीति इन संस्थानों की प्रवेश, परीक्षा और परिणाम से सम्बंधित नीतियाँ तय करती है. आरक्षण शिक्षा संस्थानों की नींव खोखली कर रहा है. गुरु-शिष्य परम्परा नष्ट हो गई है. गुरु टीचर्स बन गए हैं और शिष्य स्टूडेंट्स हो गए हैं. स्टूडेंट्स टीचर्स पर योन शोषण का आरोप लगाते हैं. टीचर्स स्टूडेंट्स को बेरहमी से पीटते हैं. कुछ स्टूडेंट्स तो अपनी जान तक गवां चुके हैं. कालेज और यूनिवर्सिटी राजनीति का अखाड़ा बन गई हैं.

ऐसा नहीं है कि इन शिक्षा संस्थानों से निकले स्टूडेंट्स जीवन में सफलता प्राप्त नहीं करते. आज हर छेत्र में जो अभूतपूर्व प्रगति हो रही है वह यही लोग कर रहे हैं. पर यह सारी सफलता धनोपार्जन तक सीमित है. इस में मानवीय संवेदना कहीं पीछे छूट गई है. धन अर्जित करने की अपेक्षाएं आसमान छू रही हैं. अपेक्षित धन अर्जित न कर पाने से मानसिक विकृति पैदा हो रही हैं. अकसर अखबारों में आत्महत्या की खबरें छपती हैं. तनख्वाह में अन्तर बढ़ता जा रहा है. कुछ लोग ६ अंकों में तनख्वाह पा रहे हैं. दूसरी और तनख्वाह इतनी कम है कि घर चलाना मुश्किल हो रहा है. यह विषमता परिवार और समाज में तनाव पैदा कर रही है. इस विषमता ने अपराध का रूप लेना भी शुरू कर दिया है.

अधिकाँश नारियों के लिए शिक्षा का मतलब केवल घर के बाहर जाकर नौकरी करना है. इस से उन्हें घर की दासता से मुक्ति मिलती है. घर के अन्दर हर व्यक्ति उन पर जोर जमाता है, जबकि दफ्तर में वह दूसरों पर जोर जमाती हैं. जितनी देर वह घर से बाहर रहती हैं उन्हें घर का काम नहीं करना पड़ता. घर के बाहर वह स्वतंत्र हैं जबकि घर के अन्दर उन्हें गुलाम समझा जाता है. आज की प्रगतिशील नारी घर को जेल मानती है. आज उसे घर के रूप में एक होटल चाहिए जहाँ उसे पहुँचने पर कोई सलाम करे, एक गिलास पानी पेश करे. फ्रेश होकर टीवी देखें, नारी सशक्तिकरण पर भाषण दें जिसे सब शान्ति से सुनें और तारीफ़ करें, मन पसंद खाना और नाश्ता पेश किया जाए, सुबह उठ कर वह फ़िर से दफ्तर जाएँ. कुछ लोग इसे ग़लत मानते हैं. पर शायद इस में इन नारिओं की कोई गलती नहीं हैं. जो शिक्षा इन्होनें ली है उस में परिवार की यही परिभाषा इन्होने सीखी है.

स्वतंत्रता हर व्यक्ति चाहता है. पर उसके साथ कुछ जिम्मेदारियां भी आती हैं ऐसा आज की शिक्षा नहीं सिखाती. यह शिक्षा स्वयं के लिए अधिकार और दूसरों के लिए कर्तव्य के बारे में बताती है. यह शिक्षा विचारों में लचीलापन हो यह नहीं सिखाती. यह शिक्षा सिखाती है कि जो हम सोचते हैं वही सही है. जो हम से अलग सोचते हैं उनके ख़िलाफ़ जिहाद करो. परिवार तुम्हें गुलाम बनाता है तो इस परिवार को तोड़ दो.

अगर हमें परिवार बचाने हैं तो इस शिक्षा में आमूल परिवर्तन करने होंगे. शिक्षा केवल घर के बाहर जाकर नौकरी करने के लिए नहीं है, उसका मुख्य उद्देश्य आदमी को इंसान बनाना है.

1 comment:

Anonymous said...

Suresh ji aap apne lekho me jo bhi likhte hai sahi likhte hai. aaj bhi aapne sahi kaha hai. log rupay ko itana mahatv dete hai ki parivar ko bhul jate hai. aaj kal paisa hi logo ke liye sabkuch ban gaya hai. sukhi jivan to hamare desh me hi hai. jo apne desh me hai vo kahi or kaha.