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Monday, July 21, 2008

एक फ़िल्म थी सूर्यवन्शम

आप सबने देखी होगी. दो नारियों को कहानी थी. उन्होंने एक पुरूष को कैसे देखा, कैसे माना और उस के साथ कैसा व्यवहार किया? एक ने उसे बाहर से देखा और अस्वीकार कर दिया. केवल अस्वीकार ही नहीं किया बल्कि उसकी भर्त्सना भी की. दूसरी ने उसका मन देखा. उसे लगा कि वह नाम से ही हीरा नहीं बल्कि काम से भी हीरा है. उस ने उसे अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार किया. दोनों ने एक दूसरे को पूर्णत्व प्रदान किया. नारी पुरूष की शक्ति बनी. पुरूष नारी की शक्ति बना. पत्नी कलेक्टर बनी.पति एक सफल व्यवसाई. समाज ने दोनों का सम्मान किया. पिता ने ऐसा पुत्र पाकर अपने को धन्य माना.

दोनों नारियां शिक्षित थीं. अपना भला बुरा समझती थीं. उन्होंने अपने निर्णय ख़ुद लिए. दूसरों ने कोशिश जरूर की उनके फैसले करने की. पर दोनों ने उन निर्णयों को नकार दिया. दोनों को मनपसंद जीवनसाथी मिले. एक का पति एक सफल व्यवसाई. दूसरी का पति अनपढ़ और बेकार, परिवार से निकाला हुआ. अनपढ़ पुरूष एक सफल व्यवसाई बना. सफल व्यवसाई अपने व्यवसाय में असफल हो गया. उसकी पत्नी सहायता के लिए दूसरी के पास आई. उसे सहायता मिली.

क्या कहेंगे आप इन दो नारियों के बारे में?

4 comments:

Deepak Purbia said...

vakyi yah film dekne layak hai

Anonymous said...

bhale ghar kii aurtey picture nahin daekhtee

राज भाटिय़ा said...

सुरेश जी फ़िल्म देखी नही, ओर आप की बात पुरी तरह से समझ आई नही ,धन्यवाद इस फ़िल्म के बारे बताने का, अब जरुर देखे गे, मे तो आप से काफ़ी प्र्भावित हु.

Suresh Gupta said...

बेनामी जी, अगर आप स्त्री हैं तब आपसे इस पोस्ट पर आपकी राय की अपेक्षा है.