परिवार भारतीय समाज का केन्द्र बिन्दु है. परिवार भारतीय सामजिक व्यवस्था का आधार है. अगर परिवार मजबूत नहीं होंगे तो समाज मजबूत नहीं होगा. परिवार टूटेंगे तो समाज भी टूट कर बिखर जायेगा. भारतीय समाज में आज एक ऐसी असामाजिक व्यवस्था जन्म ले रही है जो मनुष्य को फ़िर से जंगल के कानून का गुलाम बना देगी. अनथक प्रयासों से की गई प्रगति शून्य हो जायेगी। मनुष्य और पशु में कोई अन्तर नहीं रह जायेगा।
परिवार एक टीम है। परिवार के सदस्यों का व्यवहार उसे एक संगठित या असंगठित टीम बना देता है। खेलों में हमने देखा है कि एक असंगठित टीम किस प्रकार हार जाती है, जब कि उसका हर सदस्य स्वयं में एक अच्छा खिलाड़ी होता है। इसी प्रकार परिवार भी आपसी संगठन न होने से कमजोर हो जाता है, जबकि उस का हर सदस्य स्वयं में मजबूत होता है। इस से यह साबित होता है कि परिवार के सब सदस्य कुशल हों और एक टीम के रूप में मिल जुल कर काम करें। इस के लिए यह जरूरी है कि परिवार के हर सदस्य को उचित अवसर मिलें, उचित संशाधन मिलें, समान अधिकार मिलें और समान जिम्मेदारियां हों।
नारी सशक्तिकरण की बात अक्सर की जाती है. यह सही भी है. लेकिन नारी परिवार से अलग हो कर सशक्त नहीं बन सकती. नारी ही क्या कोई भी परिवार से अलग हो कर सशक्त नहीं बन सकता. परिवार का हर सदस्य सशक्त होगा तभी परिवार सशक्त होगा. और जब परिवार सशक्त होगा तभी परिवार का हर सदस्य सशक्त होगा।
यह आवश्यक है कि हम सब मिल कर परिवारों के सशक्तिकरण का प्रयास करें. परिवार को तोड़ने की नहीं, जोड़ने की बात की जानी चाहिए. यही सब के हित में है.
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2 comments:
ek dam theek baat .....
suresh ji bhut sahi v bhut achha likha hai.
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