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Sunday, July 20, 2008

दूल्हा चाहिए ............ एक व्यंग

मुझे एक दूल्हा चाहिए. मैं एक प्रगतिशील नारी हूँ. मेरा नाम है ........... जाने दीजिये, क्या करेंगे मेरा नाम जानकर. बैसे, नारी प्रगति के विरोधी मुझे 'आंख की किरकिरी' के नाम से जानते हैं. मैं विवाह की संस्था को दकियानूसी और नारी के विरुद्ध एक षड़यंत्र मानती हूँ. आप कहेंगे फ़िर मुझे दूल्हा किसलिए चाहिए? दरअसल मेरी मां ने यह धमकी दे दी है कि अगर मैं विवाह नहीं करूंगी तब वह आत्महत्या कर लेंगी. अब अपनी मां की जान बचाना मेरा कर्तव्य बन जाता है.

दूसरा कारण यह भी है कि जिस पुरूष के साथ मैं लिव-इन-रिलेशनशिप में रहती थी, मैंने पहले उसे ही विवाह करने के लिए कहा था, पर वह साला शादी की बात सुनते ही भाग गया. अब मैंने उस पर मुकदमा ठोक रखा है. अदालत जल्दी ही मुझे मुआबजा दिलवाएगी. इस स्थिति में 'दूल्हा चाहिए' का विज्ञापन देना पड़ा. लेकिन एक बात में साफ़ कर देना चाहती हूँ कि
शादी मेरी मर्जी और शर्तों पर होगी.

मैं शादी कोर्ट में करूंगी. तीन-चार घंटे आग के सामने बैठकर एक बेवकूफ पंडित की वकबास सुनना मेरे बस की बात नहीं है. शादी के बाद पुरूष मेरे घर पर आकर रहेगा. अनाथ पुरूष को प्राथमिकता मिलेगी. अगर किसी सनाथ पुरूष से शादी करनी पड़ी तब वह अनाथ होकर मेरे घर आएगा. मेरा मतलब है, अपने माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों से सारे संबंध तोड़कर वह मेरे घर रहने आएगा. शादी के बाद मेरे रिश्तेदार ही उसके रिश्तेदार होंगे. वह मेरे माता-पिता की सेवा करेगा. घर का सारा काम निपटाकर उनके पैर दबाएगा और उनके सोने के बाद ही सोयेगा. सुबह जल्दी उठ कर सबके लिए चाय बनाएगा. मेरा नाश्ता और लंच तैयार करेगा. मेरे आफिस जाने के बाद घर का सारा काम निपटायेगा. उसके बाद अपने आफिस जायेगा.

मैं एक पोस्ट-ग्रेजुएट कम्पूटर इंजीनियर हूँ. मेरे होने वाले पति को किसी भी हालत में ग्रेजुएट से ज्यादा नहीं होना चाहिए. मेरी लम्बाई ५ फीट ८ इंच है. उस की लम्बाई मुझसे २ इंच कम होनी चाहिए. मेरा रंग गोरा है, इसलिए उसे सांवला होना चाहिए. मैं सुबह जल्दी आफिस जाती हूँ और देर से वापस आती हूँ. इसलिए उसे एक ऐसे दफ्तर में नौकर होना चाहिए जिसमें देर से जाना और जल्दी वापस आना सम्भव हो सके. इस से उसे घर का काम करने में आसानी होगी. वह अपनी सारी तनख्वाह मुझे लाकर देगा. मैं उसे उस के खर्चे के लिए पैसे दूँगी. उस का कोई दोस्त मेरे घर नहीं आएगा. जब मेरे दोस्त घर आयेंगे तो वह उन की सेवा में हाज़िर रहेगा. वह मुझे मेडम के नाम से पुकारेगा. अगर वह मुझे प्राणनाथिनी के नाम से पुकारे तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा. जैसे जानवरों को नाथ पहना कर काबू में करते हैं बैसे ही मैं भी अपने पति को काबू में रखूँगी.

मैंने अपने बेडरूम में एक स्पेशल बेड बनबा रखा है. उस पर एक व्यक्ति ही सो सकता है. इस लिए मेरा पति जमीन पर चटाई विछाकर सोयेगा. मेरे सामने उस की आँखे हमेशा झुकी रहेंगी. वह तभी बोलेगा जब में उसे बोलने के लिए कहूँगी. मैं ब्लाग पर लिखती हूँ. मेरा पति मेरी पोस्ट पर टिपण्णी पोस्ट करेगा. इस टिपण्णी में उसे मेरी राय की तारीफ़ करनी होगी. वह अपने कुछ दोस्तों से भी तारीफ़ की टिपण्णी पोस्ट करवाएगा.

मांग में सिन्दूर, पैरों में पाजेब और विछुये, हाथों में चूड़ियां जैसी जितनी भी चीजें शादीशुदा नारी को पहनने को कहा जाता है, मैं नहीं पहनूंगी. करवाचौथ का व्रत एक मजाक है. लेकिन अगर मेरा पति यह सारी चीजें पहनना चाहे और व्रत रखना चाहे तो मुझे अच्छा लगेगा.

जो पुरूष इन शर्तों को पूरा करते हों मेरी इस पोस्ट पर टिपण्णी देकर आवेदन करें. यह विज्ञापन देकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. आप सब प्रार्थना करें कि मुझे ऐसा पति जल्दी से मिल जाए.

10 comments:

Anil Kumar said...

आजकल के सामाजिक व्यंग्य आने वाले समय की सच्चाई बनेंगे।

Smart Indian said...

bahut khoob!

Anonymous said...

आप की पोती बड़ी हो कर आप का ये बेहूदा लेखन जरुर पढे बस इश्वर से इतनी ही कामना हैं .

Anonymous said...

गुप्ताजी, आप अपनी उम्र के लिहाज से काफी ओछा बर्ताव कर रहे हैं.

ज़्यादा क्या कहना, समझदार होते तो ऐसा लिखते ही नहीं, और नासमझ को समझाना मुश्किल है.

Anonymous said...

गुप्ता जी के स्तरहीन व्यंग्य से असहमत............ ऐसी बातों पर ध्यान न दें............ उम्र के सांतवे दशक में किसी से विचार बदलने के लिए कहना ठीक नहीं लगता......... न आप बदलेंगे

और गुप्ताजी अगर अगर तथ्यों का प्रतिवाद करना ही है तो स्वस्थ ढंग से कीजिये, इतना नीचे क्यों गिरते है??? वो भी आड़ लेकर, अभी पिछले ही कमेंट्स में आपने सहानुभूति का मुखौटा लगाया हुआ था.

आपका यह कमेन्ट आपकी हताशा को व्यक्त करता है.

Anonymous said...

आप इस समाज के बुज़ुर्ग हो कर ऐसा स्तरहीन लेखन कैसे कर सकते हैं.ईश्वर ना करे आपके घर की काम काज़ी औरतें इस लेख को ना पढें,नहीं तो आपकी अपने परिवार में क्या इज़्ज़त रह जाएगी.हम २१वी सदी में जाने को बैठे हैं और आप बैलेगाडी के युग का अनुसरण करते हुए ओछा सोचते हैं और ओछा ही लिखते हैं.

Unknown said...

बेनामी जी और इला जी, परदे से बाहर आइये न. तब में आपकी बातों का जबाब दूँगा.

Unknown said...

ab inconvenienti जी, इस में ओछा क्या है जरा बताएँगे? आपकी दूसरी टिपण्णी का जबाब मैंने चोखेरवाली पर दिया है. उसे भी देखियेगा.

Anonymous said...

जिस तथ्यहीनता और नासमझी पर मैं नारीवादियों से असहमत हूँ, वही आपके विचारों में दिख रही है(भले ही विपरीत). औरत अपने से कमज़ोर पुरूष का वरण करे यह कम से कम तीन से पाँच हज़ार वर्षों तक सम्भव नहीं है. और न ही मैं दुनिया में किसी ऐसी औरत के बारे में जानता हूँ जो अपने से शारीरिक और मानसिक तौर पर कमतर पति चाहती हो. नर और नारी में मष्तिष्कगत संरचना और हारमोन संरचना काफी अलग है, पर आप शायद विज्ञान की नई खोजों से अपर्रिचित हैं.

वह कमेन्ट मैंने नहीं छापा था.

Unknown said...

ab inconvenienti जी,

मेरी बात में न तथ्यहीनता है और न ही नासमझी. तीन से पाँच हज़ार वर्षों तक की बात भी मैं नहीं जानता, पर आज की नारी पुरूष प्रधान समाज में जो स्थान खोज रही है और जिस तरह से खोज रही है बैसा इस बात से ही सम्भव है कि पुरूष उस से शारीरिक और मानसिक तौर पर कमतर हो. विज्ञान की नई खोजों से आप पर्रिचित होंगे पर मैं जो हो रहा है उसे देख रहा हूँ. कुछ समय पहले मैंने किसी सर्वे के बारे मैं पढ़ा था कि औरतें लम्पट टाइप के पुरुषों को ज्यादा पसंद करती हैं. आज की प्रगतिशील नारी पुरुषों की 'आँख की किरकिरी' बनकर प्रगति करना चाहती है. यह अगर 'आँख का चैन' बनकर किया जाए तो बेहतर होगा.