यह एक सच्ची कहानी है। यह कहानी है एक प्रगतिशील नारी की. उन्होंने कक्षा वारह तक शिक्षा ली. उस के बाद वह पढ़ नहीं पाई क्योंकि शहर में कोई कालिज नहीं था. माता-पिता थे नहीं. एक दूर के नाना जी ने उनकी जिम्मेदारी ली थी. भाई टूशन करके अपनी शिक्षा का खर्चा निकाल लेते थे. किसी तरह जिंदगी चल रही थी. नाना जी चाहते थे की उन की शादी हो जाए तो एक जिम्मेदारी से मुक्त हों. पर दहेज़ और बचपन में एक वीमारी से चेहरे पर कुछ दाग हो जाने से शादी में रुकावटें आ रही थीं.
मेरे एक बचपन के साथी थे, सतीश. माता-पिता नहीं थे. दिमागी तौर पर कुछ कमजोर होने के कारण आठवीं से आगे पढ़ नहीं पाये. भाइयों और उनके परिवार की सेवा करते, भावियों की झिड़कियां खाते. किसी तरह जिंदगी चल रही थी. दोनों के जीवन में एक मोड़ आया और सतीश से उनकी शादी हो गई. नाना जी ने अपने पैसे से सतीश को एक दूकान करवा दी. पर वह उसे चला नहीं पाये और दूकान बंद हो गई. नाना जी ने कुछ पैसे से एक और काम करवा दिया पर सतीश उसे भी चला नहीं पाये. भाइयों ने बहन को अपने साथ ले जाने की बात कही. उन्होंने एक शर्त पर जाने की हामी भरी कि सतीश भी उनके साथ जायेंगे. भाइयों को बहन की जिद माननी पड़ी.
उन्हें इस तरह अपने पति के साथ भाइयों पर निर्भर होना पसंद नहीं था, पर मजबूरी थी. उन्होंने आगे पढ़ने का फ़ैसला किया. नर्सिंग का कोर्स किया. एक लोकल अस्पताल में नौकरी लग गई. अपना मकाम अलग लेकर रहने लगीं. नाना जी और भाइयों से भी कुछ मदद मिलती ही रहती थी, पर अब वह अपने पैरों पर खड़ी थीं. दो बेटियाँ और एक बेटा हुआ. तीनों की शादी की. बेटे के दो बच्चे हुए. मेरे साले की बेटी से उनके बेटे की शादी हुई. शादी में सतीश से मिलना हुआ. वह बहुत खुश थे. कहने लगे, सुरेश यह मेरे पिछले जन्म के अच्छे कर्मों का फल है कि मेरी शादी इन से हुई, नहीं तो सारी जिंदगी भाइयों के टुकड़ों पर ही बीतती. इज्जत की जिंदगी दी है इन्होनें मुझे. अब सतीश नहीं है पर उनकी यह बात नुझे अक्सर याद आती है और उनकी पत्नी के प्रति मन में आदर और बढ़ जाता है.
आज एक अच्छा खिलखिलाता परिवार है उनका. समाज में आदर है. लोग उनकी मिसाल देते हैं और कहते हैं, 'घर बचा लिया उन्होंने अपना'. एक प्रगतिशील नारी की जीती जागती मिसाल हैं वह.
Sunday, July 27, 2008
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2 comments:
यह हे एक नारी प्रगतिशील ओर समझ दार नारी, हमे मान हे नारियो पर,आज की आजाद नारियो को यह लेख जरुर पढना चाहिये जो बराबरी की बात करती हे नारी आजादी की बात करती हे,ओर इस कहानी की नारी ही पुजनिये योग्या हे,पुरषो से भी ऊपर हे, मे प्रणाम् करता हु इस नारी को, धन्यवाद
vakai inki tarif ke liye sabd nahi hai. raj ji bilkul tik kah rhe hai. bhut badhiya. likhte rhe.
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