आज कल बहुत से ब्लाग्स पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है, नारी पर हो रहे अत्त्याचारों पर, नारी अधिकारों की समानता पर, नारी प्रगति पर. ऐसी बहस बहुत अच्छी होती है. समस्या है इस से किसी को इनकार नहीं हो सकता. एप्रोच अलग हो सकती है. चलिए कुछ मुद्दों पर एक राय बनाने की कोशिश करें.
क्या तरक्की करने के लिए दूसरों की आँख की किरकिरी बनना जरूरी है?
क्या शादी की फजीहतों से दुखी होकर शादी की संस्था को नकार देना जरूरी है?
क्या नारी पर अत्त्याचार के लिए केवल पुरुषों को दोष देना चाहिए?
घर में समान अधिकार नहीं हैं, आजादी नहीं है, क्या इस के लिए सब घर छोड़ कर चले जाएँ, या उसे सुधारने की कोशिश करें?
समस्याएं दोषारोपण से सुलझती हैं या आपसी मेल से?
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9 comments:
सारे प्रश्न वाजिब है ओर जवाब भी उन्ही में है....
सामयिक प्रश्न उठायें हैं आपने, इश्वर से प्रार्थना है की इस चर्चा में भाग लेने वाले यहाँ सोच कर ही लिखे ! अधिकतर टिप्पड़ी यहाँ बिना पढ़े ही लिखी जातीं हैं ! गुप्ता जी ! इस विषय पर मेरा विचार है कि कुछ लेखक या लेखिकाएं पूर्वाग्रह या किसी व्यक्तिगत घटना से ग्रसित होकर लिखतीं हैं ! ऐसे लेख और विचार समाज के साथ कभी न्याय नहीं कर पाते बल्कि उसको पथभ्रष्ट करने में एक भूमिका ही नभाते हैं ! हमारा भारतीय समाज और संस्कार आज भी विश्व में अमूल्य हैं !
शादी व्यवस्था के फेल होने का कारण, अपनी पुत्रियों को प्यार और पारस्परिक समझ की सही शिक्षा न देना ही है ! मैं यहाँ पर बहु और पुत्री में कोई भेद नही कर रहा ये सिर्फ़ नारी के दो रूप हैं ! और माता पिता या सास ससुर हम लोग हैं ! मेरा यह भी मानना है की पुत्र और पुत्री दोनों ही एक दूसरे को सम्मान दें ! परन्तु पुत्री उम्र में छोटी होने के कारण, पहले सम्मान देने की जिम्मेदारी उठाये ! तो कोई घर अपूर्ण नही हो सकता है !
मूल मंत्र सिखलाता हूँ मैं
याद लाडली रखना इसको
यदि तुमको कुछ पाना हो
देना पहले सीखो पुत्री
कर आदर सत्कार बड़ों का गरिमामयी तुम्ही होओगी,
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्ही रहोगी !
सुरेश जी धन्यवाद आप के सबाल ही जबाब भी हे
दोनों ही विकट परिस्थितियों
आप के सब प्रश्नों के उत्तर मे ये पोस्ट लिंक दे रही हूँ . जरुर देखे आज की सदी मे ये हो रहा हैं अगर आप को ये गलत नहीं लगता तो संभवता आप सब भी किसी न किसी पूर्वाग्रह या किसी व्यक्तिगत घटना से ग्रसित होकर या नारी की समानता की पुकार से आतंकित हो कर ये प्रशन बार बार उठाते हैं . कभी बिना इस सोच के की बेटी को क्या और कितना समझाये ये सोचे की जो ब्लॉग आज कल नारी विषय आधारित चर्चा कर रहे हैं वो आप को समस्या की जड़ दिखा रहे हैं क्योकि आने वाले समय मे नारी की तरक्की बढेगी कम नहीं होगी और अगर समाज ने नारी को हर वो अधिकार नहीं दिया जो संविधान मे दिया गया हैं बराबरी का तो नारी और पुरूष की प्रतिस्पर्धा बढेगी कम नहीं हो सकती . शादी को व्यक्तिगत चुनाव का अधिकार मान ले जो करता हैं सो भी ठीक जो नहीं चाहता सो भी ठीक फिर चाहे पुरूष हो या नारी . २५ साल की उम्र के बाद अपनी बच्चो को बड़ा माने उन्हे अपनी फैसले ख़ुद लेने दे . अभिभावक की कर्तव्य पुरती करे अपनी बच्चो को स्वाबलंबी बनाने के लिये पुत्र और पुत्री को जीने के सामान अधिकार मिले जो संविधान देता हैं
समस्याएं दोषारोपण से नहीं सुलझती हैं ,इसके लिए आपसी मेल आवष्यक है।
रचना जी, मैंने आपके द्बारा इंगित पोस्ट भी पढ़ी और उस पर आपकी प्रतिक्रिया भी. आप लगता है कुछ ज्यादा ही परेशान हैं नारी प्रगति को लेकर. यहाँ तक कि अगर कोई समाज में किसी नारी द्बारा की गई प्रगति की भी बात करता है तो भी आप परेशान हो जाती हैं और उस का विरोध करती हैं. वह पोस्ट तो दो नारियों की उपलब्धि की बात कर रही थी पर आपने उस पर भी ऐतराज ही जताया. क्या आप इस विषय पर अपना एकाधिकार मानती हैं? मेरे पर्श्नों के उत्तर तो नहीं दिए आपने पर उस पर वही पुरानी टिपण्णी कर डाली.
रचना जी की विद्वता उनकी रचनाओं में तथा टिप्पडियों से साफ़ झलकती है, साथ ही पुरुषों के प्रति तिरस्कार की भावना भी ! इसमें कोई संदेह नही है की वे अपनी बात निर्भीकता से कहने के लिए जानी जाती हैं, परन्तु सुरेश चंद्र गुप्ता जी की बात को उचित आदर देकर, उन्हें अपनी शैली पर पुनर्विचार अवश्य करना चाहिए कि वे पुरूष समाज के प्रति कहीं अधिक निर्मम एवं कठोर रवैया तो नहीं अख्तियार करती जा रही है ! कारण मुझे नही मालूम पर लगता है वे नारी के एक ही रूप को देखती रही हैं जब कि नारी जन्मदायिनी मां है नारी ममतामयी बहिन है है, नारी ही पुरूष को अपने विभिन्न रूपों में पुरूष को जीना सिखाती आयी है .....आशा है इस अपनी आलोचना नहीं मानेंगी !
neither i am against man , nor against woman but i am against the gender bais which is part and parcel of indian system . we dont teach our sons what we teach our daughters and there is disparity in equality . mr satish saxena i have erely placed my views on the post why should you measure with respect and other notions . as a blogger i can place my views impersonaaly . its you people who feel i am against man because you have a norm in mindset that which ever woman talks of equlity is against man . constitution has given has equal rights i talk of those equal rights and when you discuss with some one forget the age , sex , and be impersonal in discussions .
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