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Friday, August 8, 2008

क्या नौकरी को नारी प्रगति का मापदंड मान लेना सही है?

अगर हम नारी समस्यायों से सम्बंधित ब्लाग्स पर जाएँ तो लगता है कि सारी नारी समस्यायें सिमट कर नौकरी पर आ गई हैं, या फ़िर नौकरी को आजादी पाने के लिए एक शस्त्र के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. दोनों ही बातें ग़लत हैं. अगर नौकरी से नारी की सारी समस्यायें दूर हो गई होतीं तो जीवन भर नौकरी करने वाली अशिक्षित नारियां भी तरक्की कर गई होतीं. केवल शिक्षित नारियां ही नारी वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करती. नारियां बहुत बड़ी संख्या में खेतों में नौकरी करती हैं, बिल्डिंग साइट्स पर नौकरी करती हैं, घरों में नौकरी करती हैं. इन नारियों की संख्या शिक्षित होकर नौकरी करने वाली नारियों से बहुत ज्यादा है. जीवन भर नौकरी करने के बाद भी यह नारियां अपने जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं कर पाती. नौकरी करने वाली शिक्षित नारियां तो अपनी बात ब्लाग्स पर या अन्य कहीं कह भी लेती हैं, पर अशिक्षित नारियां तो बेचारी कहीं कुछ कह भी नहीं पाती. उन्हें तो यह भी पता नहीं कि क्या कहा जाए और कहाँ कहा जाए.

जिन नारियों ने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की है वह वधाई की पात्र हैं. लेकिन इन में ज्यादा वह नारियां है जिन्हें शिक्षा के पूरे अवसर मिले और वह इस योग्य बन सकीं कि अपना भला-बुरा ख़ुद सोच सकें. यही नारियां एक दूसरे की बात भी करती हैं ब्लाग्स पर और अन्य माध्यमों पर. पर इनकी संख्या कितनी है? क्या इनकी प्रगति को देख कर यह कहा जा सकता है कि नारी जाति ने प्रगति कर ली है. क्या नारी प्रगति का मापदंड केवल यह नारियां ही होनी चाहियें? उन नारियों का क्या जो अशिक्षित हैं और जिनका पूरा जीवन नौकरी करते बीत जाता है, और फ़िर भी उनका जीवन स्तर ऊपर नहीं उठ पाता? कैसे रहती हैं यह नारियां? देखना चाहेंगे आप? यदि हाँ तो क्लिक करिए:

मानो या न मानो, यहाँ इंसान रहते हैं

नौकरी को नारी की प्रगति का मापदंड मान लेना ग़लत है.

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

नौकरी को नारी की प्रगति का मापदंड मान लेना ग़लत है. मे आप की बात से सहमत हु, धन्यवाद आप ने लेख मे मेरे मन की बात कही हे