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Tuesday, August 26, 2008

आज बजेगा अन्याय के ख़िलाफ़ युद्ध का बिगुल

'पापा मैं शादी नहीं करूंगी', नीता घर में घुसते हुए चिल्लाई.
पिता अकस्मात इस हमले से आश्चर्यचकित हो गए. फ़िर संभल कर बोले, 'क्या हुआ बेटी?'
बेटी बोली, 'आपको पता है न, ममता की तीन महीने पहले शादी हुई थी, तभी से उसकी ससुराल वाले उसे दहेज़ के लिए परेशान कर रहे हैं. दो इन पहले उस के पति ने उसे बहुत बुरी तरह मारा'.
पिता दुबारा चकराए, 'अरे यह तो बहुत ग़लत बात है. क्या ममता ने इस का विरोध नहीं किया?'
'वह क्या करती', बेटी ने कहा, 'पति उसे पीट रहा था, उसकी मां और बहन उसकी दाद दे रही थी, पिता चुपचाप बैठे तमाशा देख रहे थे'.
'पर ममता तो अकेली इन चारों के लिए काफ़ी थी. उस ने कराते किस लिए सीखा था?' पिता बोले.
'पापा वह उस का पति था', बेटी रोने को हो आई.
'नहीं, जो पुरूष उसे पीट रहा था उसका पति नहीं था', पिता ने कहा, 'पति पत्नी को पीटता नहीं, पति पत्नी की रक्षा करता है. जो उसे पीट रहा था वह एक वहशी दरिंदा था, और ऐसे वहशी दरिंदों को सबक देने के लिए ही उस ने कराते सीखा था'.
'पर पापा',
'कुछ पर बर नहीं', पिता बोले, 'ममता ने चुपचाप पिट कर अन्याय का साथ दिया है. अब मुझे यह बताओ, उस के पिता क्या कर रहे हैं? उसके आफिस के लोग क्या कर रहे हैं? तुम उसकी सहेली हो, तुम क्या कर रही हो?'
'उसके पिता उसे अपने घर ले गए हैं. आफिस के लोग और मैं क्या कर सकते हैं?'
'कैसी बात कर रही हो? बेटी तुमने आज मुझे निराश किया'.
'क्यों पापा, मुझे क्या करना चाहिए था",
'पुलिस में रिपोर्ट लिखाओ, उस दरिन्दे के दफ्तर जाकर प्रदर्शन करो, ममता से कहो वापस अपनी ससुराल जाए. अपने पिता के घर जाकर उस ने दूसरी गलती की है'.
'लेकिन वह फ़िर मारेंगे उसे'.
'ममता से कहो कि अगर वह दुबारा उस पर हाथ उठाये तो वह उस का हाथ तोड़ दे'.
'पापा यह क्या कह रहे हैं आप?'
'मैं सही कह रहा हूँ', पिता ने द्रढ़ता से कहा, 'अगर तुम्हारे साथ ऐसी स्थिति आई तो मैं चाहूँगा तुम भी यही करो'.
'पापा इसीलिए तो मैंने शादी न करने का फ़ैसला किया है'. बेटी बोली.
'यह फ़ैसला ग़लत है. दफ्तर में यौन शोषण की घटनाएं होती हैं, क्या इस लिए तुमने दफ्तर जाना छोड़ दिया है? सड़कों पर गुंडे चैन छीनकर भाग जाते हैं, क्या इसलिए तुमने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया है? अन्याय, शोषण और अत्त्याचार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़नी है, उस से हार नहीं माननी. ममता ने अगर इस समय हार मान ली तो उस की सारी जिंदगी नर्क बन जायेगी. उसे लड़ना है अपने लिए, अपने माता-पिता के लिए, अपने जैसी और लड़कियों के लिए. उस की इस लड़ाई में हम सबने उस का साथ देना है. वह जीतेगी तो हम जीतेंगे, तुम जीतोगी, हमारा समाज जीतेगा'.
'आप ठीक कह रहे हैं पापा', बेटी की आवाज में एक दृढ निश्चय था,'मैं घबरा गई थी, मुझे माफ़ कर दीजिये. अब आपकी बेटी आप को निराश नहीं करेगी'.
और वह फुन्कारती हुई घर से बाहर निकल गई.
आज बजेगा अन्याय के ख़िलाफ़ युद्ध का बिगुल.

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