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Wednesday, August 27, 2008

राम दुलारी की कहानी

राम दुलारी ने आठवीं कक्षा पास की है, ऐसा उस के परिवार वालों ने कहा था. जिन श्रीमान से उसकी शादी हुई उन्होंने समाज शास्त्र में एम्ऐ किया था पर समाज और शास्त्र के बारे में उनका ज्ञान गुलशन नंदा और प्यारेलाल आवारा के सस्ते उपन्यासों तक ही सीमित था. उधर राम दुलारी को समाज क्या है और शास्त्र क्या कहता है और उसका अपने पक्ष में कैसे इस्तेमाल करना है इसकी पूरी जानकारी थी. शादी होकर जब वह पहली बार ससुराल आई तो उसने तुंरत एलान कर दिया कि सब उसे पुष्पा के नाम से पुकारेंगे. राम दुलारी नाम उसे अच्छा नहीं लगता. फ़िर धीरे-धीरे उसने बताना शुरू किया कि और क्या-क्या उसे अच्छा नहीं लगता. अच्छा न लगने वालों की लिस्ट में सबसे ऊपर उसकी सास का नाम था. फ़िर एक दिन पुष्पा ने घोषणा की कि इस घर से उसका सम्बन्ध सिर्फ़ उस के पति तक सीमित है. कोई और व्यक्ति उस से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध बनाने की कोशिश न करे. श्रीमान जी की माता जी ने इसे बुझे मन से स्वीकार कर लिया. बेचारी पहले ही अपनी सास के सामने कुछ नहीं बोलती थीं, अब बहू के सामने भी कुछ नहीं बोलेंगी.

पुष्पा ने कुछ दिन बाद अपना चूल्हा-चौका अलग कर लिया. उसके घर के हिस्से में उसके परिवार (मायके) के लोग इकठ्ठा रहते और खूब मजाक उड़ाते श्रीमान जी के परिवार वालों का. श्रीमान जी सस्ते सामाजिक उपन्यासों के साथ पकौड़ी और चाय गुटकते और अपने जीवन को धन्य मानते. समय रहते पुष्पा ने सेकंड लाइन आफ ओफेंस तैयार कर डाला, दो बेटे और दो बेटियाँ. बड़ी बेटी ने ससुराल जाकर अपनी मां का नाम रोशन किया. छोटी बेटी ने भी यह कोशिश की पर कामयाब नहीं हुई. उसके श्रीमान जी कुछ दूसरी किस्म के श्रीमान जी थे जो कहने में कम और करने में ज्यादा विश्वास करते थे. उनका 'काम के नीचे दो थप्पड़' का फार्मूला काम आया और पुष्पा की छोटी बेटी एक ही चूल्हे में कैद हो गई.

फ़िर पुष्पा ने शादी की बड़े बेटे की. बहू के घर में प्रवेश करते ही पुष्पा ने अपना वायो-डाटा उसे सुना दिया. बेचारी इतना डर गई कि कभी कुछ बोली ही नहीं. पुष्पा ने उसका काफ़ी सामान अपने कब्जे में कर के उसे अलग कर दिया. या यह कहिये कि छोटे बेटे को साथ लेकर अलग हो गई. बस यहीं पुष्पा गच्चा खा गई. जिस बेटे पर उस ने अपनी सारी उम्मीदें लगा रखी थीं वह छोटा बेटा जरा दूसरे टाइप का निकल गया. उसने साफ़-साफ़ कह दिया कि मां-बाप उसके साथ रह सकते हैं पर उन्हें अपना खर्चा ख़ुद करना होगा. पुष्पा के दुर्भाग्य से छोटी बहू भी उसी के टाइप की निकली. नहले पर देहला हो गया. कुछ दिन बाद छोटे बेटे ने अलग मकान ले लिया. पुराने मकान में एक कमरा छोड़ कर बेटा बाकी कमरों में ताला लगा गया. अब पुष्पा अपने श्रीमान जी के साथ इस कमरे में रहती हैं. श्रीमान जी ६८ वर्ष की आयु में नौकरी करते हैं तब दो वक्त की रोटी मिल पाती है. पुष्पा समय बिताने के लिए जादू-टोना करती है. बीमार रहती है पर उस से सब डरते हैं, पता नहीं कब किस पर जादू-टोना करदे.

राम दुलारी की कहानी यहाँ विश्राम लेती है. आगे की कहानी जब जैसा होगा बताया जाएगा.

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