सोमवार की बात है. शताब्दी एक्सप्रेस से चंडीगढ़ जा रहा था. वेटर अखबार देने आया तो हिन्दी का अखबार ले लिया. उसमें एक लेख था - "लड़कियों को दिए जाने वाले आशीर्वाद". लेख का सारांश था - 'भारतीय समाज में लड़कियों को दिए जाने वाले आशीर्वाद ऐसे हैं, जो घूम फ़िर कर उन के पति की लम्बी आयु की ही कामना करते दिखाई पड़ते हैं या फ़िर उन के पुत्र जन्म के लिए प्रेरित हैं. लकिन आज समय बदल गया है. आज के दौर में दूधों नहाओ पूतो फलो जैसे आशीर्वादों का कोई अर्थ नहीं है. आज की लड़कियां चाहती हैं कि इस आशीर्वादों की जगह नए आशीर्वाद दिए जाने की स्वस्थ परम्परा शुरू होनी चाहिए".
लेखक सुधांशु गुप्त ने इन आशीर्वादों का कोई अर्थ नहीं है, यह तो कह दिया पर नए आशीर्वाद क्या हों इस बारे में कुछ नहीं कहा. कुछ स्त्रियों के बारे में भी उन्होंने लिखा है जो इन आशीर्वादों को अर्थहीन मानती हैं या अपमान समझती हैं, पर उन्होंने भी नए आशीर्वाद क्या हों इस बारे में कुछ नहीं कहा. 'दूधों नहाओ पूतो फलो' का नया रूप क्या होना चाहिए? 'सौभाग्यवती भव' पर उन्हें ऐतराज है क्योंकि इस का मतलब है कि पत्नी पति से पहले मरे. इस ऐतराज को कैसे दूर किया जाए? मेरे विचार में जिन स्त्रियों को यह आशीर्वाद अपमानजनक लगते हैं, उन्हें इस बारे में कुछ करना होगा. एक तरीका हो सकता है कि आशीर्वाद देने की इस अस्वस्थ परम्परा को ही समाप्त कर दिया जाय. पर आज भी ऐसी बहुत सी स्त्रियाँ हैं जो प्रणाम करते समय इन आशीर्वादों की ही इच्छा रखती हैं. उनके लिए यह आशीर्वाद पूरी तरह अर्थपूर्ण हैं. पति-पत्नी के बीच में प्रेम और इन आशीर्वादों में एक सम्पूर्ण सामंजस्य हैं. इस लिए यह तरीका प्रक्टिकल नहीं लगता. यह हो सकता है कि प्रणाम करते समय पहले ही कह दिया जाय कि कौन सा आशीर्वाद चाहिए, पति के पक्ष में या पत्नी के पक्ष में. या यह भी हो सकता है कि प्रणाम करना ही बंद कर दिया जाय. न होगा बांस न बजेगी बांसुरी.
मुझे जब भी कोई प्रणाम करता है या करती है, तो में एक ही आशीर्वाद देता हूँ - 'सुखी रहो, स्वस्थ रहो, सानंद रहो'. यह आशीर्वाद सबके लिए है, विवाहित या अविवाहित, पुरूष या स्त्री. अभी तक तो किसी ने इस पर ऐतराज किया नहीं. बैसे भी में जबरदस्ती आशीर्वाद नहीं देता. जब कोई प्रणाम करता है तभी आशीर्वाद देता हूँ.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
'सुखी रहो, स्वस्थ रहो, सानंद रहो'.यह सबसे अच्छा आशीर्वाद इसलिए है , क्योंकि वह आशीर्वाद पानेवाले की इच्छा के अनुरूप काम करेगा।
Post a Comment